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रहस्यमाई चश्मा भाग - 27




रेल डिब्बे और प्लेटफार्म के मदद के मध्य बहुत कम जगह ही होती है और प्लेटफॉर्म से रेललाइन की दूरी भी दो से तीन फीट होती है पता नही किस मुश्किल कठिनाई से सुयश अपने हाथ को मेरे चश्मे तक पहुंचने में कामयाब हुआ मेरा चश्मा लेकर ज्यो ही उठने लगा रेल ने रेंगना। शुरू कर दिया लेकिन साहस शक्ति देखिए इस नवजवान की इसका दाहिना हाथ लगभग कट कर झूलने लगा फिर भी उसने मेरा चश्मा नही छोड़ा मैंने बडी कोशिश के बाद चलती रेलगाड़ी की चेन अन्य यात्रियो के सहयोग से खिंचवाया,,,,,


रेलगाड़ी रुकने पर स्टेशन मास्टर से अनुनय विनय निवेदन करके सुयश की लिखित जिम्मेदारी लेकर दरभंगा पहुंचा जहाँ पहुचने में विलम्ब के कारण सुयश के शरीर मे जहर फैल रहा था विलम्ब का कारण यह था कि दरभंगा से पहले सुयश की चिकित्सा कि व्यवस्था उपलब्ध ही नही थी डॉ रणदीप झा बहुत बड़े डॉक्टर है,,,,,,



उन्होंने सुयश कि चिकित्सा किया सुयश के शरीर मे जहर बहुत तेजी से फैल रहा था और सेप्टीसीमिया का खतरा था जिसके बाद जीवन सुयश का बचा पाना बहुत कठिन था अतः चिकित्सक रणदीप झा द्वारा ही सुयश का दाहिना हाथ काटने का निर्णय लिया गया आज आपके सामने जो सुयश खड़ा है,,,,,,


 उसका नया जीवन है सुयश को नौकरी नही मिली यह कोई चिंता कि बात नही है चिंता कि बात है क्योकि जिस स्तर की नौकरी के लिए यह घर से निकला था उससे ईश्वर सुयश के लिए संतुष्ट नही थे मेरा विश्वास कि उन्ही कि प्रेरणा से सुयश कि मेरी मुलाकात हुई सत्य है सुयश को इस मुलाकात कि कीमत अपना दाहिना हाथ देकर चुकानी पड़ी मैं मंगलम चौधरी सुयश को चौधरी साम्राज्य का सबसे जिम्मेदार एव महत्त्वपूर्ण नवजवान मानता हूँ,,,,,



ईश्वर एव पुरुखों कि कृपा से मेरे पास इतना है कि हज़ारों घरों में खशियो का सांचार होता है आप इस सांचार का एक श्रोत सुयश भी होगा ।श्यामचरण झा को बातचीत में जब स्प्ष्ट हो गया कि मिथिलांचल के अभिमान और मैथिल मिथक मंगलम चौधरी स्वंय उनके द्वारा पर पधारकर शोभा बढ़ा रहे है तो खड़े होकर बोले चौधरी साहब मैं शर्मिदा हूँ मैंने आपको पहचानने में गलती एव विलम्ब दोनों किया है आप तो हमारे गरीबखाने में ऐसे आतिथि है जो सदैव के लिए मुझे गौरव प्रधान करते है मंगलम चौधरी ने सादगीपूर्ण विनम्रता से कहा श्यामाचरण जी मेरा परम सौभाग्य एव ईश्वर कि मुझ पर कृपा दोनों ही है,,,,,,



 जिसके कारण आप जैसे विद्वत एव सम्मानित व्यक्ति के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ शयमाचरण जी की आंखे भर आयी मंगलम चौधरी तो पुजारी तीरथ राज से शुभा के विषय मे सुन कर ही संवेदनाओ के तूफानों से लड़ रहे थे जो कभी भी फट कर सैलाब बनने को आतुर थे अवसर श्यामा चरण जी ने स्वंय प्रदान कर दिया मंगलम चौधरी खुद को अब नही संभाल सके और उठते हुये फफक कर बच्चों जैसे सजल धारा के नेत्रों से श्यामचरण जी को गले लगाते हुये बोले श्यामाचरण जी आप का सानिध्य मुझे अपने वात्सल्य के संस्मरण करा गया मैं धन्य हुआ आपके आतिथ्य से श्यामचरण झा जी एव मंगलम चौधरी कि भेंट मुलाकात के प्रत्यक्ष दर्शी पुजारी तीरथ राज सुयश मेहुल एव मुन्ना मियां सभी थे,,,,,,,,


जिसको दोनों का मिलन भरत और राम का मिलन जैसा लग रहा था एक व्यक्ति वहां ऐसा भी था जिसे मंगलम चौधरी एव श्यामाचरण जी का मिलन बहुत पीड़ा पहुंचा रहा था वह था चुरामन जो श्यामाचरण जी का ही आदमी था और रहता भी था ऐसे कि उसकी निष्ठा पर कोई शक कि गुंजाइश ही ना हो लेकिन उसे श्यामचरण जी कि सेवा टहल में नियोजित योजना के अंतर्गत पूरे हिदायत के साथ गांव का शातिर दबंग नत्थू ने ही भेजा था उंसे मालूम था कि सारे हाकिम हुक्काम एव गांव में कोई भी आता है तो वह श्यामाचरण जी के यहॉ ही पहुंचता है,,,,,,,


चुरामन श्यामाचरण जी के यहां ऐसे प्रत्येक आने वाले के सम्बंध में नत्थू को जानकारियां देता था नत्थू ने शुभा कि पैतृक समाप्ति को तो विवादित बनाकर अपने कब्जे में करने की कोशिश कर ही रहा था लेकिन सरकारी आलम ने यह कह कर संपत्ति  कब्जे कर रखी थी कि शायद यशोवर्धन के परिवार का कोई सगा मिल जाय जिसके लिए बीस वर्ष का समय निर्धारित कर दिया था इसके अतिरिक्त नत्थू गांव के नवजवानों को तरह तरह के प्रलोभन देकर उन्हें भटकाता रहता और और गांव में अपना एक ऐसा समूह तैयार कर चुका था,,,


 जो समाज मे समानता के लिए कथित संघर्ष के कर्णधार थे,,,वास्तव में नत्थू का उद्देश्य गांव में अपना एकछत्र राज्य स्थापित करना एव सबसे बड़ा आदमी बनने को था दिमागी दौर पर शातिर एव युवा अवस्था मे डांकु था वह अपने द्वारा जब युवकों को दिग्भर्मित किया जाता था तब यही बताया जाता था कि उसने सामीजिक समानता के लिए बड़े लोंगो को लूटा और गरीबो में बांट दिया जबकि सच्चाई यह थी की नत्थू ने सिर्फ आम जन खास जन सबको लुटा ही था लेकिन नवयुवकों का संवेदनशील मन बिना कुछ वर्तमान भविष्य अतीत पर सोच विचार किये नत्थू द्वारा दिये कुछ प्रलोभनों के कारण उसके साथ हो लेते पूरा जवार नत्थू की हरकतों एव जरायम क्रियकलपाप से त्रस्त था,,,,,,,



 देशी शराब भांग गांजा आदि का चोरी छुपे व्यवसाय बाजारों के दिन आस पास के बाजारों में आम जन कि मेहनत मजदूरी कि कमाई को तरह तरह के हथकंडे अपना कर लूटना यही उसका मुख्य कार्य था उम्र के लगभग पचास वर्ष बाद भी उंसे ना तो भगवान का कोई भय था ना ही किसी मनुष्य या किसी प्राणि से उसने जवार के हर महत्वपूर्ण व्यक्ति और स्थान पर अपने विश्वसनीय व्यक्तियों को लगा रखा था चुरामन उन्ही में एक था जिसे नत्थू ने श्यामाचरण जी के यहां काम पर लगा रखा था नत्थू के आदमियों कि खास बात यह थी कि उन्हें जहाँ भी नत्थू ने काम पर लगा रखा था किसी को कोई शक कभी नही हुआ जब शुभा गर्भरस्थ अवस्था मे गांव आयी थी तब भी नत्थू एव उसके छुपे गिरोह ने ही बहुत तांडव मचाया और शुभा को परेशान करने के सभी निकृष्टतम हथकंडे अपनाए # जाको राखे साईया मार सके ना कोय # ही शुभा के विषय मे सत्य था नत्थू एव उसके आदमियों ने तो कोई कोर कसर उठा ही नही रखी थी और जब भी अवसर मिलता पुजारी तीरथ राज एव शुभा को तंग करते रहते,,,,,,,



जारी है









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4 Comments

kashish

09-Sep-2023 08:04 AM

Amazing part

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RISHITA

02-Sep-2023 09:30 AM

Nice

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madhura

01-Sep-2023 10:36 AM

Nice

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